प्रसिद्ध कुमाउंनी लोक गायक प्रहलाद मेहरा के आकस्मिक निधन से उत्तराखंड के कला जगत में शोक की लहर है। हल्द्वानी के चित्रशिला घाट पर मेहरा का अंतिम संस्कार किया गया, जहां हजारों लोगों ने उन्हें अंतिम विदाई दी। मेहरा का बुधवार को दिल का दौरा पड़ने से 53 साल की उम्र में आकस्मिक निधन हो गया था।
प्रहलाद मेहरा के निधन से उत्तराखंडी समाज में गहरा शोक है। उनकी सुमधुर आवाज़ ने पहाड़ों की धरोहर को जीवंत किया था। उन्हें ‘प्रहलाद दा’ के नाम से प्रसिद्ध था। 15 से 80 वर्ष की आयु तक, उन्होंने पहाड़ी लोकसंगीत को अपनी आवाज़ से सजीव बनाया।
प्रहलाद मेहरा के निधन का समाचार सुनकर उनके स्नेही, समर्थक और संगीत प्रेमी सभी दुखी हैं। उनके अनुसार, प्रहलाद दा ने उत्तराखंड की संस्कृति और सभ्यता को बचाने के लिए अपनी आवाज़ और गीतों को समर्पित किया।प्रहलाद मेहरा के निधन के समय, उनके घर में गहरा शोक है। उनके भाई मनोहर मेहरा ने बताया कि प्रहलाद दा के गीतों में पहाड़ की नारी की पीड़ा, संघर्ष और उत्तराखंड के सौंदर्य को अभिव्यक्ति मिलती थी। महिलाओं के संघर्ष को आवाज देते हुए ‘पहाड़ै की चेली लै कभै न खाया द्वि रवाटा सुखै लै’ गीत गाया। ‘बार घंटै की ड्यूटी मेरी तनख्वाह ढाई हजार..’ से छोटी नौकरी के लिए महानगरों में धक्के खाते युवाओं की व्यथा लिखी।
उनके बेटे नीरज मेहरा ने बताया कि उनके पिता की मौत ने उनकी और उनके परिवार की जिंदगी में गहरा सन्नाटा छोड़ा है। मेहरा के साथ संगीत की दुनिया में एक युग का अंत हो गया है, लेकिन उनके गीतों और आवाज की यादें हमेशा हमारे दिलों में जीवित रहेंगी