चमोली: बुग्यालों के संरक्षण हेतु सामुहिक प्रयास किए जाने के प्रण के साथ संपन्न हुआ पांच दिवसीय “बुग्याल बचाओं अभियान”, पर्यावरणविदों ने बुग्यालों के संकट पर जताई चिंता।
देवाल। चमोली।
बुग्यालों के संरक्षण के लिए सामुहिक प्रयास किए जाने के प्रण के साथ पांच दिवसीय बुग्याल बचाओं अभियान संपन हो गया। अभियान के एक दशक पूरे होने पर देश के सुन्दरतम और सबसे बड़े बुग्यालों में एक आली-बेदनी बुग्याल में शनिवार को स्थानीय ग्रामीणों के साथ बुग्यालों की सुन्दरता निहारने आए पर्यटकों और बुग्याल बचाओं अभियान के सदस्यों ने यह संकल्प लिया। इस दौरान अभियान दल के सदस्यों ने बुग्यालों की सेहत बेहतर बने इसके लिए इस क्षेत्र के अनुभवी लोगों के अनुभवों के संकलंन के साथ बुग्यालों में हो रही हो रहे परिवर्तनों का अध्ययन भी किया।
पन्द्रह सदस्यी दल में पर्यावरण-विज्ञानी, शोध-छात्र, वनविद, ग्रामीणों के साथ वनकर्मी और पर्यावरण-पत्रकारिता से जुड़े अनुभवी पत्रकार शामिल थे। चौदह साल के अंतराल में होने वाली उत्तराखण्ड की सबसे बड़ी और विख्यात धार्मिक यात्राओं में एक श्री नन्दादेवी राजजात यात्रा भी इसी आली-बेदनी बुग्याल के इलाके से होकर गुजरती है। यात्रा दो साल बाद होनी है। चार दिन तक यह यात्रा बुग्याली इलाकों से गुजरती है। पिछली यात्राओं में अनियत्रित भीड़ के दबाव से उच्च हिमालय के संवेदनशील इलाकों में अव्यवस्था की स्थिति बनती दिखी है। 2014 में आली और बेदनी बुग्याल में राजजात यात्रा के पहुंचने से पहले ही हजारों लोग जमा हो गए थे। जिसका असर बुग्यालों की सेहत पर दिखा था। सुन्दर बुग्याली वनस्पतियों की जगह अनेक स्थान प्लास्टिक-पौलीथीन के ढेरों में बदल गए थे।
बुग्याल बचाओं अभियान के दौरान आने वाली राजजात यात्रा के बेहतर संचालन के साथ आली बेदनी और उससे आगे के बुग्याली इलाकों में भारी जनदबाव से होने वाले नुकसान को कैसे कमसे कम किया जाय? हमारी सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहरों में एक राजजात- यात्रा कैसे बेहतर हो?इस विषय को इस बुग्याल बचाओं अभियान के तहत प्रमुखता से गांवों में रखा गया। अलग-अलग गांवों में यात्रा से जुड़े ग्रामवाशियों ने इस मसले पर अपनी बात रखी। यात्रा के दौरान बुग्याली इलाकों पर कम से कम नकारात्मक प्रभाव पड़े और यात्रा से जुड़े गांवों के लोगों की आजीविका भी इससे बढ़े इस पर सकारात्मक चर्चा हुई।
पांच दिन तक चले इस अभियान की शुरूआत चमोली जिले की थराली तहसील के कुलसारी गांव से शुरू हुई। अगले दो साल बाद होने वाली नन्दादेवी राजजात का यह गांव मुख्य पड़ाव है। जहां दल के सदस्यों ने स्थानीय ग्रामवाशियों और स्कूली छात्र-छात्राओं के साथ बुग्यालों के सरक्षंण को लेकर संवाद किया और कुलसारी में बने स्मृति वन में पौधरोपण भी किया।
चण्डी प्रसाद भट्ट पर्यावरण एवं विकास केन्द्र और जागो हिमालय समिति के सयुक्त तत्वाधान में 25 सितम्बर से शुरू हुए अभियान मे स्थानीय ग्रामीणों के साथ-साथ अलग-अलग क्षेत्रों के जानकार व्याक्तियों ने प्रतिभाग किया। इस दौरान कुलसारी,कुलिंग,वाण,गैरोली पातल और भगवावासा में ग्रामीणों के साथ पर्यटकों के साथ संवाद किया। बुग्याल बचाओं अभियान की शुरूआत दस साल पहले अक्टूबर 2014 आली-बेदनी बुग्याल से ही शुरू हुई थी। बुग्याल बचाओं अभियान के दस साल पूरे होने पर बेदनी बुग्याल में बुग्यालों के संरक्षण के लिए अपनी सामर्थ्य के अनुसार सक्रिय प्रयास करने का प्रण भी लिया गया।
दल ने आली और बेदनी के साथ कुंआरीतोल बुग्याल,कुर्मतोली बुग्याल और बार्गंचू बुग्याल के इलाके के साथ अन्वाल टोड़ी,घोड़ा-लटयाल,पातर-नचौणी और भगुवाबासा के इलाके का भी अध्ययन किया। इस इलाके में अलग-अलग स्थानों पर रूके पर्यटक दल से भी बातचीत की। इस दौरान कई जगह पर बुग्याली घास और वनस्पतियों की पैदावार अपेक्षाकृत कम दिखी। जिन स्थानों पर घोडे-खच्चरों की आवाजाही अधिक दिख रही थी वहां बुग्याली घास और वनस्पतियों की प्राकृतिक पैदावार पर नकारात्म्क असर दिखायी दे रहा था। कुछ स्थानों पर खास किस्म की वनस्पतियां जो पहले भेड़-बकरियों के अस्थायी आवासों के आसपास ही दिखती थी उसका दायरा बढ़ता हुआ दिखायी दिया। अभियान के सदस्य और वनविद त्रिलोेक सिंह बिष्ट ने इन खरपतवारों के बुग्याली इलाकों की बढ़त को भेड़ों और बकरियों के द्वारा उत्पादित ऊंन की मांग और उपयोग में कमी आने से जोड़ते हुए आली और बेदनी में जगह-जगह बिखरे ऊन के ढेरों के साथ जोड़ते हुए बताया कि आली और बेदनी समेत इस इलाके में जंगली पालक घास का दायरा यहां के भेड़ों की ऊन की मांग के कम होने से जुड़ा हुआ है। उन्होने बताया कि पहले जब ऊन की अच्छी मांग थी तो भेड़पालक जंगली-पालक नाम वाली इस वनस्पति को जिसका कि वैज्ञानिक नाम रूमैक्स है के इलाके में भेड़ों को चराई के लिए ऊन निकालने के बाद ही भेजते थे। मांग कम होने से अब ऊन का उपयोग नहीं हो पा रहा है इस लिए भेड़ पालक इस पर ध्यान नहीं देत हैं जिससे रूमैक्स के बीज भेड़ों की ऊन के साथ चिपक कर नए-नए इलाकों में भी आसानी से पहुंच रहे हैं। जिससे इसका फैलाव बढ़ रहा है।
बुग्याली इलाकों में जंगली सुअर भी पहुंचने लगे है। भेड़पालकों ने बताया कि पिछले कुछ दशकों से इन इलाकों में जंगली सुअरों के झुण्ड के झुण्ड पहुंच रहे हैं जो अपने भोजन के लिए बुग्यालों में जगह जगह मिट्टी खोद रहे है। यह सब खुलखुल्या की जड़ और नई वनस्पतियों की जड़ों को खाने के लिए कर रहे है।
पर्यावरण कार्यकर्ता मंगला कोठियाल के नेतृत्व में चले इस दल में जिला रेडक्रास सोसाईटी चमोली के चैयरमैन और दशोली के पूर्व प्रमुख भगत सिंह बिष्ट, दिल्ली में एनडीटीबी इडिया के समाचार संपादक राकेश परमार, एडवोकेट एवं जागों हिमालय समिति के सचिव रमेश थपलियाल,वनविद त्रिलोक सिंह बिष्ट, सामाजिक कार्यकर्ता सुशील भट्ट,दशोली ग्राम स्वराज्य मंडल के सयुक्त मंत्री विनय सेमवाल, देवलधार के हरेन्द्र सिंह, सामाजिक कार्यकर्ता एवं पत्रकार राकेश सती, गढ़वाल विश्वविद्यालय के पर्यावरण विभाग के शोध छात्र अक्षय सैनी, अंश शर्मा, बदरीनाथ वन प्रभाग के गौरव बिष्ट, श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय की सौम्या भट्ट और चण्डी प्रसाद भट्ट पर्यावरण एवं विकास केन्द्र के प्रबंध न्यासी ओमप्रकाश भट्ट शामिल थे। इस अभियान की रिपोर्ट दल की ओर से राज्य सरकार एवं संबधित विभागों को दी जायेगी।