पर्यावरण एवं विकास केंद्र गोपेश्वर द्वारा वनाग्नि रोकथाम और मानव एवं वन्यजीव संघर्ष शोध यात्रा के दौरान ग्रामीणों से की बातचीत, मानव-वन्यजीव संघर्ष पर हुई विस्तृत चर्चा।
चमोली: जंगलों की आग, समृद्ध वन क्षेत्रों के ह्रास और वन और वन्य जीवों के पर्यवास के सिकुड़ने के समन्वित प्रभाव ने मानव और वन्य जीव संघर्ष की घटनाओं को बढ़ाने का कार्य किया है। इस सबसे वन्य जीवों के स्वभाव में बदलाव आ रहा है। जंगलों में खाद्य श्रृंखला भोजन की कमी के चलते वन्यजीवों ने आवासीय इलाकों और गाँवों के आसपास सक्रियता बढ़ी है। यह अब एक गंभीर संकट का रूप लेने लगा है। यह तथ्य सी पी भट्ट पर्यावरण एवं विकास केंद्र गोपेश्वर द्वारा वनाग्नि रोकथाम और मानव एवं वन्यजीव संघर्ष शोध यात्रा के दौरान ग्रामीणों से बातचीत के दौरान उभर कर निकली।
अध्ययन दल ने यात्रा के पहले दिन गैरसैण विकास खंड के खंसर क्षेत्र के राइकोट, गडैथ, मालकोट लाटूगैर गांव में अलग अलग बैठक कर ग्रामीणों के साथ प्रत्यक्ष संवाद कर वनाग्नि मानव तथा वन्यजीवों के मध्य बड़ रहे संघर्ष के कारणों पर बात की। इस दौरान ग्रामीणों ने खुलकर अपनी बात रखी।
मालकोट के ग्राम प्रधान हीरा सिंह कठैत ने बताया कि, जंगलो के परिवेश और उसका ताना-बाना
बिगड़ रहा है जिस कारण यह समस्या दिन प्रतिदिन बड़ती जा रही है। पहले लोगो का जंगल से प्रत्यक्ष जुड़ाव था। पर हाल के वर्षों में अब जंगलो मे जाना कम हो गया है जिससे जंगलो के पारंपारिक रास्तो में झाड़ियाँ उग आई है जो जानवरो की शरण स्थली बन गई है। पहले महिलाए समूह में जाती थी और झाड़ियों को काट देती थी। अब लोग जानवरो के भय से झाड़ियो को जला देते हैं जिससे आग पूरे जंगल में फैल जाती हैं।
र्राइकोट की सत्तर वर्षीय गणपति देवी नें बताया कि, उनके देखने में पहले जंगली जानवर भालू, गुलदार और सुअर गाँव में नहीं आते थे। जंगलों में भी आग कभी कभार ही लगती थी और जब लगती भी थी तो ग्रामीण उसे तुरंत बुझाने पंहुच जाते थे। पर अब तो आग हर साल लग रही है।
महेशी देवी नें बताया कि, पहले जानवर शोर करने पर भग जाते थे पर अब उनके व्यवहार में आक्रमकता है।
देवी देवी ने खर्को के बंजर पड़ जाने को जानवरों का गाँवों में आने का मुख्य कारण बताया। उन्होंने कहा कि पहले खर्क के आबाद रहने से जानवरो को उनका भोजन जैसे जंगली सुअर को गोबर से कीड़े और बाग को जो पालतू पशु होते थे वहीँ जंगल में मिल जाते थे। खर्को के बंजर पड़ जाने से जानवर अब गाँवों का रुख कर रहे हैं। सरिता देवी ने कहा कि, आग से जंगलो का चक्र बिगड़ गया है जिसने भालू और बाग को गाँवों की ओर रुख करने के लिए मजबूर कर दिया है। कुंती देवी नें कहा कि, जंगलो में आग लगने के बाद से ही सरो, हिरण और जंगली सुअर का गाँवों में आना शुरू हुआ।
शिव सिंह ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि, आज से चार दशक पूर्व उन्होंने गाँव के जंगल में मात्र एक सुअर देखा था। पर अब उनकी इतनी टोलिया हो गई है कि उन्हें अपनी फसल को बचाना एक चुनौती हो गई है।
लाटूगैर की अस्सी वर्षीय वृद्धा काशी देवी बताया कि, उन्होंने अपने जीवन में जंगलो मै हो रहे परिवर्तन को प्रत्यक्ष अनुभव किया है। पहले आग की घटनाए वर्षों में कभी कभी देखने को मिलती थी। भालू भी जंगलो में कभी कभी ही दिखता था, महिलाओ का टोलियों मै होने के कारण वो देख कर भग जाता था। गुलदार पालतू मवेशी को निबाला बनता था पर जंगल में ही। उन्होंने बताया की पहले रामगंगा का प्रवाह भी काफी तीव्र और उसमे पानी भी काफी रहता था पर अब वो भी धीरे धीरे बहुत कम हो रहा है जो चिंता का विषय है।
शोध एवं जन-जागरूकता अभियान में सी पी भट्ट पर्यावरण एवं विकास केंद्र के प्रबंध न्यासी ओम प्रकाश भट्ट, मंगला कोठियाल, विनय सेमवाल, वन विभाग के वन दरोगा सरिता नेगी,वन दरोगा जंगम सिंह, स्थानीय पुलिस चौकी मैथान के हेड कास्टेबल धनपाल सिंह, होम गार्ड धन सिंह फायर सर्विस गैरसैंण के प्रभारी शौकीन सिंह रमोला , धर्मेंद्र सिंह कंडारी के साथ ही अन्य कई लोग शामिल हैं।
